अरविन्द पासवान
(अरविन्द पासवान हमारे समय और परिवेश के कवि हैं. उनका जुड़ाव कविता, नाटक और संगीत में समान रूप से है. उनकी कवितायें असंयत होते मनुष्य को संवेदना की राह दिखाने वाली कवितायें हैं. उनका एक परिचय आलोचक का भी है. हम यहीं कहीं उनकी आलोचनात्मक प्रतिबद्धता से भी परिचय प्राप्त कर पायेंगे. फिलहाल आप 'अस्मिता की आवाज' में पढ़िए उनकी फिलहाल की लिखी कुछ कवितायें)
जन्म : 18/02/1973
माता : फूलेश्वरी देवीपिता : रामबाबू भगत
शिक्षा : स्नातक प्रतिष्ठा (अँग्रेजी)
पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित एवं आकाशवाणी से प्रसारित
रंगमंच से गहरा जुड़ाव, कई नाटकों में
अभिनय एवं निर्देशन
नौकरी : पूर्व मध्य रेल के लेखा विभाग में, पदस्थापित : पटना
पता : 202 एम. ई. अपार्टमेंट ईस्ट बोरिंग कैनाल रोड पटना मो. : 7352520586 ईमेल : paswanarvind73@gmail.com
अमंग देई
(25/08/2016.
क्षय रोग (टी. बी.) के कारण उड़ीसा
कालाहांडी
मेलघरा की अमंग देई के
असामयिक निधन पर. जिसकी लाश को पैसे के अभाव में उसके पति दना माँझी ने अस्पताल से
अपने कंधों पर मीलों तक ढोया।)
इतनी जल्दी क्या पड़ी थी
संसार को अलविदा कहने की
अमंग देई
अभी तो
आपके पति ने आपसे नेह भी नहीं जोड़ा था
अभी तो
आपकी बेटी गुड़िया भी नहीं पहचानती
अभी तो
बहुत-से सपने पूरे करने थे आपको
इतनी जल्दी भी क्या थी
अमंग देई
आपके जाने पर
आपके अधूरे सपने पर
राज्य के मुख्य सेवक काफी परेशान हैं
देश के प्रधान सेवक बहुत दुखी हैं, चिंतित हैं
आपके दुख से द्रवित होकर
उन्होंने बहुत सारी योजनाएँ घोषित की हैं
घोषित किया है कि--
शहरों को स्मार्ट शहर बनाना है
आमजन को सुविधाएं तमाम आसानी से उपलब्ध कराना है
घोषित किया है कि--
सांस्कृतिक मूल्यों पर
देश की गरिमा को फिर से स्थापित करना है
गाय, गंगा और गीता बचाना है
अब आप ही बताइए अमंग देई
व्यवस्था
विकास की चिंता करे
मूल्यों की रक्षा करे
या आपकी
देश को चाँद का सफर करना है
लगाना है ग्रहों के चक्कर
हासिल करना है बहुत सारी जानकारियाँ ग्रहों से
क्या ऐसे समय में आपका जाना अच्छा हुआ?
अब देखिए न अमंग देई
अपने कंधे पर उठाए आपको
आपके पति दना माँझी
किसी मुर्दा सभ्यता का भार लिए
ढो रहे आपकी लाश पैदल
अपनी अबोध बेटी के साथ
जिसका हाल बहुत अच्छा नहीं है
कुछ पल तो ठहर जातीं आप
बेटी के लिए
बहुत दूर है कालाहांडी का मेलघरा
बेटी सहित दना माँझी को
अभी मीलों सफर तय करना बाकी है अमंग देई
यह अलग बात है अमंग देई कि
हमारा शहर अभी आपकी तरह मुर्दा नहीं हुआ है
वह इतना संवेदनशील ज़रूर है कि
अपने एंडरॉएड स्मार्टफोन के 13 मेगापिक्सल कैमरे से
आपकी तस्वीर विभिन्न पोजों में खींचकर
फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर पोस्ट कर सकता है
कर सकता ईमेल समाचार पत्रों के संपादकों को
फैला सकता है खबर पूरी दुनिया में
इंटरनेट के जाल से
अमंग देई
शहर का कोई अदना-सा कवि
आप पर कविता लिखकर, गाकर मरसिया
सहानुभूति पा सकता है
वह बोल सकता है कि हम बेबसों की ज़ुबान हैं
साबित भी कर सकता है कि हम और हमारी सभ्यता
मुर्दा नही है
संसार को अलविदा कहने की
अमंग देई
अभी तो
आपके पति ने आपसे नेह भी नहीं जोड़ा था
अभी तो
आपकी बेटी गुड़िया भी नहीं पहचानती
अभी तो
बहुत-से सपने पूरे करने थे आपको
इतनी जल्दी भी क्या थी
अमंग देई
आपके जाने पर
आपके अधूरे सपने पर
राज्य के मुख्य सेवक काफी परेशान हैं
देश के प्रधान सेवक बहुत दुखी हैं, चिंतित हैं
आपके दुख से द्रवित होकर
उन्होंने बहुत सारी योजनाएँ घोषित की हैं
घोषित किया है कि--
शहरों को स्मार्ट शहर बनाना है
आमजन को सुविधाएं तमाम आसानी से उपलब्ध कराना है
घोषित किया है कि--
सांस्कृतिक मूल्यों पर
देश की गरिमा को फिर से स्थापित करना है
गाय, गंगा और गीता बचाना है
अब आप ही बताइए अमंग देई
व्यवस्था
विकास की चिंता करे
मूल्यों की रक्षा करे
या आपकी
देश को चाँद का सफर करना है
लगाना है ग्रहों के चक्कर
हासिल करना है बहुत सारी जानकारियाँ ग्रहों से
क्या ऐसे समय में आपका जाना अच्छा हुआ?
अब देखिए न अमंग देई
अपने कंधे पर उठाए आपको
आपके पति दना माँझी
किसी मुर्दा सभ्यता का भार लिए
ढो रहे आपकी लाश पैदल
अपनी अबोध बेटी के साथ
जिसका हाल बहुत अच्छा नहीं है
कुछ पल तो ठहर जातीं आप
बेटी के लिए
बहुत दूर है कालाहांडी का मेलघरा
बेटी सहित दना माँझी को
अभी मीलों सफर तय करना बाकी है अमंग देई
यह अलग बात है अमंग देई कि
हमारा शहर अभी आपकी तरह मुर्दा नहीं हुआ है
वह इतना संवेदनशील ज़रूर है कि
अपने एंडरॉएड स्मार्टफोन के 13 मेगापिक्सल कैमरे से
आपकी तस्वीर विभिन्न पोजों में खींचकर
फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर पोस्ट कर सकता है
कर सकता ईमेल समाचार पत्रों के संपादकों को
फैला सकता है खबर पूरी दुनिया में
इंटरनेट के जाल से
अमंग देई
शहर का कोई अदना-सा कवि
आप पर कविता लिखकर, गाकर मरसिया
सहानुभूति पा सकता है
वह बोल सकता है कि हम बेबसों की ज़ुबान हैं
साबित भी कर सकता है कि हम और हमारी सभ्यता
मुर्दा नही है
नवोन्मेष
.........................
पेड़ों में
पत्तों में
कलियों में
फूलों में
हवा में
दिशाओं में
ज़र्र:-ज़र्र: में
हुआ है
नवोन्मेष
खिल उठा है दिग-दिगंत
इस वसंत
खिल उठेगी देह और आत्मा मेरी भी
जब फोडूंगा आँखों को
शब्द की शिलाओं पर पटक-पटक
छोडूंगा कलुषित विचारों को ठमक-ठमक
हमारा भी होगा
दृग्नोमेष
इस वसंत
उनके हिस्से का वसंत
पेड़ों में
पत्तों में
कलियों में
फूलों में
हवा में
दिशाओं में
ज़र्र:-ज़र्र: में
हुआ है
नवोन्मेष
खिल उठा है दिग-दिगंत
इस वसंत
खिल उठेगी देह और आत्मा मेरी भी
जब फोडूंगा आँखों को
शब्द की शिलाओं पर पटक-पटक
छोडूंगा कलुषित विचारों को ठमक-ठमक
हमारा भी होगा
दृग्नोमेष
इस वसंत
उनके हिस्से का वसंत
.........................................
जिन्होंने
सरसों के फूल खिलाए
खुद पीला पड़कर
जिन्होंने
कोयल हित बाग लगाए
अपना घोंसला जलाकर
जिन्होंने
धरती से आकाश तक मार्ग बनाए
अपनी देह बिछाकर
जिन्होंने
स्नेहिल रक्त से सींची
वसुंधरा की पोर-पोर
वे
अभिशप्त हैं आज तक
गायब है उनके जीवन से
उनके हिस्से का वसंत
सवाल
.........................................
जब से एक बच्चे ने
उठाया है सवाल कि
गणेश जी की गरदन कटी
उनमें हाथी की गरदन फिट हुई
उनकी गरदन गई कहाँ?
उस हाथी का क्या हुआ?
बाल समय में
हनुमान जी ने सूरज निगल लिया
क्या सूरज पृथ्वी से छोटा था?
इसी तरह के
बच्चे के कई सवाल
हमारे दिमाग में चक्करघिन्नी की तरह घूमते हैं
और हम उत्तर तलाशते हुए
गश खाकर गिर जाते हैं
सवाल अब भी अनुत्तरित है
जिन्होंने
सरसों के फूल खिलाए
खुद पीला पड़कर
जिन्होंने
कोयल हित बाग लगाए
अपना घोंसला जलाकर
जिन्होंने
धरती से आकाश तक मार्ग बनाए
अपनी देह बिछाकर
जिन्होंने
स्नेहिल रक्त से सींची
वसुंधरा की पोर-पोर
वे
अभिशप्त हैं आज तक
गायब है उनके जीवन से
उनके हिस्से का वसंत
सवाल
.........................................
जब से एक बच्चे ने
उठाया है सवाल कि
गणेश जी की गरदन कटी
उनमें हाथी की गरदन फिट हुई
उनकी गरदन गई कहाँ?
उस हाथी का क्या हुआ?
बाल समय में
हनुमान जी ने सूरज निगल लिया
क्या सूरज पृथ्वी से छोटा था?
इसी तरह के
बच्चे के कई सवाल
हमारे दिमाग में चक्करघिन्नी की तरह घूमते हैं
और हम उत्तर तलाशते हुए
गश खाकर गिर जाते हैं
सवाल अब भी अनुत्तरित है
एक दिन मैं भी चला जाऊँगा
...................................................................
बुद्ध आए
चले गए
संत ज्ञानी महात्मा बाबा आए
वे भी चले गए
एक-एक कर सब चले जायेंगे
एक दिन मैं भी चला जाऊँगा
लेकिन
जातिभेद वर्णभेद और वर्गभेद रहेंगे
मनुष्य और मनुष्यता को गुलाम बनाकर