मंगलवार, 7 मार्च 2017

शैली किरण की कवितायें

शैली किरण






अस्मिता की आवाज में आज पढ़िए 'शैली किरण' की कुछ बेहतरीन कवितायें. शैली फिलहाल की ऐसी कवयित्रियो में शामिल जिनका एक बड़ा पाठक वर्ग है और जिनकी कवितायें सीधे आपके भीतर उतरती चली जाती हैं. उनकी कविता पहाड़ की उंचाई और घाटी की गहराई को अपने में समेत कर जो वितान बनाती है उसी से प्रेरित हैं यहाँ प्रस्तुत कवितायें. मूलतः हिमाचल की रहने वाली शैली पेशे से शिक्षिका हैं. प्रस्तुत हैं उनकी उदबोधनात्मक कुछ कवितायें :


00
सुनो मित्र,
इतिहास की किताबों में,
उनके किस्से हों ना हों,
सतलुज के पानी में,
उनकी कहानियाँ जरूर होंगी,
वे ,
जिन्होंने धर्म,जाति ,मजहब,
सब से हटकर,
केवल राष्ट्रधर्म निभाया,
उनकी विचारधारा ,
वकालत करती,
मेहनतकश की,
मिट्टी में बंदूक ,
उगाने की कोशिश,
धरती पुत्र की,
शायद इसलिए,
राजधर्म ने ,
उन किताबों को छुपा दिया है,
कहकर राष्ट्रद्रोह की किताबें,
धर्मविरोधी किताबें,
पर जानते हो,
इतिहास मरते हैं,
गिरगिट की तरह ,
रंग बदलते हैं,
पर,
क्रांति कभी नहीं मरती,
इसके बीज दोज़ख़ की,
आग भी नहीं जला सकती।

01
सुनो प्रिय
ये मत पूछो की जीवन में,
फिर प्यार किया मैंने ?
हाँ ऐसा बहुत कुछ ,
जो ना इक बार किया मैंने ..!
फिर कभी किसी की दी चोक्लेट ,
के रैपर नहीं सम्भाले मैंने,
फिर रात भर जागकर कॉर्ड पर ,
फूल नहीं उकेरे मैंने,
फिर किसी के दिए ख़त ,
सौ सौ बार,
हर्फ़ हर्फ़ ,
नहीं खंगाले मैंने ..!
फिर किसी की तस्वीर को,
कैन्वस पर नहीं उकेरा मैंने,
फिर किसी की पलकों पर,
बाज़रे का फूल नहीं फेरा मैंने,
फिर किसी के गाल पर गुलाल,
तीन अंगुलियों से नहीं लगाया मैंने,
सर्दी में आइसक्रीम को कोक में फिर,
नहीं मिलाया मैंने,
तेज़ रफ़्तार बाइक का बहाना बनाकर,
किसी काँधे पर सिर नहीं टिकाया मैंने,
किसी की याद में ना मन्नत माँगी,
ना ही रो रो कर तकिया भीगाया मैंने,,
किसी की तस्वीर के साथ ना तय किया सफ़र कोई,
आते जाते लोगों से ना पूछी किसी की ख़बर कोई,
पलकों के शामियाने गिराकर फिर ना नापी डगर कोई,
ना आँसू ना ख़ुशी ,ना फिर पढ़ी मैंने नज़र
कोई,
फिर ना रुमाल पर नाम काढ़ा कोई,
ना क़दमों की आहटों को समझा मैंने,
ना टेलेफ़ोन की तारों से मन उलझा फिर कभी,
ना उसकी घंटी पर धड़कने तेज़ हुई,
ना रफ़ू करके रात भर कोई क़मीज़,
दिन के उजाले में पहनी मैंने,
ना तोड़ा फिर गुलाब कोई फिर मैंने,
ना ही तोड़ी कोई काँटों भरी टहनी मैंने,
कोई नाम ना लिखा काग़ज़ पे सौ बार,
ना मिटाया ही फिर मैंने,
ना कोई वादा ही किया किसी से,
और ना ही फिर निभाया मैं............!

2.
सुनो प्रिय,
मैंने कई सालों तक,
सम्भाले गुलाब,
किताब के पन्नो में,
और सालों तक जिया,
उनकी महक को,
इस डर से ,
की टूट ना जाए कोई पत्ती,
सबसे छुपाकर रखा,
ना जाने क्यूँ,
किसी से ना बाँटी,
ना ग़म ना ख़ुशी,
फिर एक दिन ,
पता नहीं किस भाव में,
दें दी किताबें रद्दी ,
और उदास सूखे गुलाबों को,
दूर बहा ले गयी नदी..!
3.
सुनो प्रिय,
आइने से प्रेम करो,
माना कि इक दिन टूटना है इसे,
फिर भी आइने से प्रेम करो,
जब बाहर बादल हों,
बिजली हो,
बादलों का शोर हो,
साँझ हो,
भोर हो,
दसों द्वार बंद कर,
मिटाकर बाहर के डर,
आइने से प्रेम करो,
आइने को रंग दो,
स्नेह की गंध दो,
साफ़ कर दो,
संदेह की भाप,
मोह की तैलयता,
लोभ की धूल,
जलाकर चिराग़,
दूर अहं का अँधेरा करो,
फिर अपने आप से मिलो,
आइने से प्रेम करो..!
4.

सुनो मित्र,
पानी सा बहना,
शिकायत करने वाले ,
तूफ़ान नहीं बनते,
ज़िंदगी जिस साँचे में ढाले,
ठण्ड या गरमी में उबाले,
आँच को सर्दी को बराबर सहना,
जिस रंग रूप में ढलना,
ना स्वभाव ये बदलना,
अपनी प्रकृति में बस रहना,
धवलगिरी की चोटी,
या समंदर की तलहटी,
बादलों का दामन,
या धरती का गर्भ,
निर्मल झरने,
धधकते इंजिन,
बार बार जीने का तरीक़ा बदल,
बस किसी भी रूप चुपचाप,
अपनी राह विरल बनाना,
ठहरना मृत्यु,
जीवन है बहना !
5.
सुनो बिटिया,
कुछ लोग मात्र शिकारी होते हैं,
बगुले की भाँति ,
आँख बंद करके,
शांत,स्थिर पानी का भी भरोसा मत करना ।
कुछ लोग उपदेशक भी होते हैं,
वो तुम्हें सुनते नहीं,
सिर्फ़ अपनी कहते हैं,
वे जन्मजात बहरे होते हैं,
उन लोगों की बातों पर कान मत धरना,
कुछ लोगों के लिए तुम मात्र वस्तु,
हो सकती हो,
अपनी आज़ादी का मोल समझना,
इसलिए जीवन में कभी क्रय विक्रेय का मोह मत करना ।
6.
मेरे महबूब,
बहुत खूबसूरत है यह पहाड़,
मेरे देश का हर रंग है यहाँ,
बाँस की हँस कर दोहरी होती टहनियाँ,
जब बाँसुरी बन सजती हैं,
कहती हैं व्यथा बिछोह की,
किसी गडरिये के होठों पर बैठकर,
दर्द की लहरियों से गूँज उठता है वन,
झरना भी,दौड़ने लगता है तेज,
गाते हुए तन्हाई का गीत,
तय करना चाहता है,दौड़ कर,
बुराँस के जंगल,
दूर निकलना चाहता है,
कोयल की कूक,
पपीहे की धुन,
कठफोडवे की टुकर टुकर से,
चम्पा की महक से,
ठहर जाता है,
किसी झील से मिलकर,
मधुमक्खियां नृत्य करती हैं,
फूलों की क्यारियों में,
उनके पँखो का गुँजन मधुर है,
कई पाँजेबो से,
उसमें बँधन की खनक नहीं,
बॅाटल ब्रश पर मँडराते,हमिंग बर्ड
मेरी आँखों से देख सको तो,
देख सको मोरों का नृत्य,
सुन सको उनका कलरव,
जँगली मुर्गे का बाँग देकर मुझे उठाना,
शहतूत की शाखों का राह में लचक जाना,
अंजीर का पकना,
कैकटस के फूल आना
बहुत कुछ जो मैं कह ना पाऊँ,
शब्द से परे महसूस करना !
तुम्हारी दुनिया से अलग मेरी दुनिया,
कितना लाजिमी है,
उनके एक होने से डरना !

विशिष्ट पोस्ट

सामाजिक रूपांतरण, नवजागरण और आर्य समाज की हिंदी सेवा

  सामाजिक रूपांतरण , नवजागरण और आर्य समाज की हिंदी सेवा ......................................................................................