बिपिन बिहारी
स्थान : पंचमहल्ला,
खिजरसराय, गया बिहार
शिक्षा बी ए
ऑनर्स (राजनीति विज्ञान, पटना विश्वविद्यालय, पटना)
सम्प्रति :
पूर्व मध्य रेल, जपला में लिपिक पद पर कार्यरत
सृजन:
कहानी संग्रह : ‘अपना
मकान’ ‘पुनर्वास’ ‘आधे पर अंत’ ‘राजमार्ग पर गोलीकांड’ ‘आगे रास्ता बंद है’ ‘चील’ ‘बोझमुक्त’
‘तिलस्म’ व ‘दो ध्रुवीय’ आदि
उपन्यास : ‘एक
स्वप्नदर्शी की मौत’ ‘हमलावर’ ‘धन धरती’ ‘अपने भी’
कविता संग्रह :
‘जलती रहे मशाल’
लघुकथा संग्रह :
‘नीव की पहली ईंट’ प्रकाशित
‘मरोड़ उपन्यास’
एवं ‘जंगल जाग उठा है’ कहानी संग्रह शीघ्र प्रकाश्य
विशेष : ‘आधे पर
अंत’ कहानी संग्रह पर एक छात्रा द्वारा एमफिल, रचनाओं पर दो शोध पंजीकृत
‘आपकी जात छोटी
है’ कहानी का बांग्ला में अनुवाद
इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में ‘भारतीय दलित साहित्य विशेष अध्ययन’ पाठ्यक्रम
में ‘आमने-सामने’ नामक कहानी सम्मिलित
संपर्क : लेन
नंबर 6,
जगदेव पथ रोड, नंबर 4 स्टेशन रोड, गया, बिहार 823002
मोबाइल नंबर 933 4154845
कवितायें :
भाषाई जंतु
........................
सावधान आदिम युग
आ रहा है
उस सभ्यता के
दौर से गुजर रहे हैं हम
जहां देह मुक्त
हो गई है औरत
और पुरुष हो गया
है रिश्ताविहीन
हम उस मोड़ पर
खड़े होने की कोशिश में हैं
जहां दो शरीर
हैं
एक औरत का, एक
मर्द का
औरत अपनी रौ में
होने लगी है
और पुरुष अपनी रौ
में
पुरुष वर्चस्ववादी
है
और
औरत.......................
जब आदिम युग आ
ही जाएगा
तब क्या करेंगे
स्त्री पुरुष
सभ्यता की टोपी
पहनकर
जहां स्त्री
पुरुष के बीच
सिर्फ दो लिंगी
का रिश्ता होता था
ना बस रोते थे
ना तन पर
सिर्फ होता था
शरीर
अब सिर्फ रहेगी
सभ्यता की चकाचौंध
और वस्त्र महज
रहेंगे दिखावे के
और उनका काम
होगा
आदिम युग का
तब फिर क्या
होगा
तब फिर क्या
सोचेंगे हम
ऐसा क्यों होगा
हम लाख चुके हैं
सभ्यता की सरहदों को
और यह भी जान
चुके हैं
कुछ नहीं है
सभ्यता के नाम पर
हम सिर्फ हैं एक
भाषाई जंतु
और कुछ नहीं
2.
उनकी तेजस्विता
अपने खुरखुरे
और निर्लज्ज
इतिहास के पन्ने को
धोने पोंछने.........संवारने
के लिए
एक नया इतिहास
गढ़ रहे हैं
वह दलितों
मजलूमों की बुनियाद छीनकर
उनकी तेजस्विता
बिल्कुल काजल हो
गई है
झरने से गिरते
पानी की कजलता
तब तक है
जब तक वह किसी
लपलपाती धारा से नहीं जुड़ती
जबकि उन्हें भी
पता है
कि कजलता को
धारा से जुड़ना ही जुड़ना है
धारा है तो
कोई न कोई उससे
धोएगा अपने पांव ही
आचमन करेगा ही
खूब इतरा रहे
हैं वे
अपनी निर्लज्जता
पर
एक भाई सता रहा
है उन्हें भी
जिस तरह
अपने इतिहास को
धोने पोंछने की
तत्परता दिखला
रहे हैं वे
और उन्हें यह
मुगालता हो गया है
कि उनकी तत्परता
पर मौन रह जाएंगे लोग
3.
ईश्वर के ना
होने पर
.........................................
ईश्वर के ना
होने पर
छिड़ी हुई थी बहस
ईश्वर यदि नहीं
होता
नहीं होती हवा
नहीं होता पानी
नहीं होती
पृथ्वी
हम ईश्वर की देन
है
मैंने कहा
ईश्वर एक भ्रम
है
इस संसार में को
ईश्वर ने नहीं
बल्कि संसार स्वतः
स्फूर्त प्रक्रिया से बना है
यह मैं नहीं
स्टीफन हॉकिंस
कह रहे हैं
आत्मा परमात्मा
नाम की कोई चीज नहीं है
संसार का
निर्माण नहीं
बल्कि विकास हुआ
है
इस चार्ल्स
डार्विन कह रहे हैं
उनकी बात यदि
मैं मानूं
पृथ्वी के अलावा
भी कई ग्रह हैं खगोल में
चांद पर तो ना
हवा है
ना पानी
मनुष्य भी नहीं
है
मंगल ग्रह का भी
हाल यही है
तब क्या,
ईश्वर क्या
सिर्फ पृथ्वी पर ही अवतरित हुआ है
यदि ईश्वर है
तो आने ग्रहों
पर क्यों नहीं
जहां मनुष्य है
वहां ईश्वर है
जहां मनुष्य
नहीं
वहां ईश्वर भी
नहीं
ईश्वर मानव
निर्मित है
परंतु मानने को
कोई तैयार ही नहीं मेरी बात को
तब मैं भी
उसकी बात क्यों
मानूं
जो पाखंड और
अंधविश्वास की गर्भ से निकली हुई है
4.
नैतिकता का पाठ
.................................
जब मैं करने
लगता हूं
अपने मन की
पढ़ाने लगते हैं
वह मुझे
नैतिकता का पाठ
उनका ‘नैतिक’
क्या है
समझ नहीं पाया
अब तक
वह मेरी हर हरकत
पर
रखते हैं अपनी
पैनी नजर
और समझाने लगते
हैं वे
अपने खिलाफ मेरी
हरकतों को
वह सबसे बड़े
नैतिक हो जाते हैं
और मैं अनैतिक
कभी समझ में
नहीं आई मुझे
उनकी नैतिकता
उसका स्वरुप
क्या है
किस चेहरे का है
लेकिन वे नैतिक
कह जाते हैं
5.
अब और क्या
चाहिए
.....................................
रोज हो रहा है
भूकंप
क्या सच में
खत्म हो जाएगी
धरती
विलीन हो जाएंगे
जीवन के सारे
तत्व
धरती से
आखिर क्यों होता
है
भूकंप
क्यों मचती है
तबाहियाँ धरती पर
प्रकोप तो नहीं 33 करोड़ देवताओं का
जो चल रहे हैं
नाराज
जीवन से
क्या नहीं होती है
उनकी पूजायें
पूजाओं के नित्य
ईजाद की जा रही
विधियां
नंगई भी पूजाओं
की श्रेणी में
हो गई है दर्ज
कहीं कहीं तो
बात करी देवता
भी हैं
उन 33 करोड़ देवताओं में भी
स्त्री खोर
अब और क्या
चाहिए
देवताओं को
फिर भी वे
नाराज चल रहे
धरती से
6.
सावधान,
मनुस्मृति युग आ रहा है
........................................................
सावधान,
आ रहा है
मनुस्मृति युग
फिर कोई
ब्राह्मण अपना जनेऊ पकड़ कर
देगा अपनी गवाही
और उसकी गवाही
मानी जाएगी सत्य
और दलितों को
अपनी सच्चाई
साबित करने के लिए
पीना पड़ेगा जहर
फिर दलितों के
साए
माने जाएंगे
अपवित्र
और राजपथ पर
निकलने से पहले
गले से लटकाना
पड़ेगा हंडिया
और हाथ में लिए
रखना होगा झाड़ू
फिर ब्राह्मण हो
जाएगा सबसे पवित्र
और फिर भी औरत
के साथ
कर सकेगा संभोग
औरत सिर्फ हो
जाएगी
उसके लिए भोग
वस्तु
आश्चर्य तब होता
है
इतना खुश होने
वाला है
फिर भी बहुजन है
मौन
खेल रहा है
श्रेष्ठता-अश्रेष्ठता
का खेल
चल रहा है वह भी
मनु के पद
चिंहों पर
और ब्राह्मणवाद
दिन बाद दिन
होता जा रहा है
निर्मम और खूंखार
सावधान,
आ रहा है
मनुस्मृति युग
7.
खूबसूरत पल के
लिए
............................................
एक खूबसूरत पल
जैसे सड़क पर उग
आये
छोटे बड़े गड्ढे
जैसे उफनती हुई
नदियां
अपने साथ ले
जाती हुई
किनारे की
मिट्टी
जैसे गुलाब की
टहनियों के कांटे
जैसे भूख से
बिलखते हुए बच्चे
और बेबस मां
रोते हुए बच्चे
को चुप कराने के लिए
उमेठ्ती हुई
उनके कान
जैसे मंदिरों के
मस्तलों से लटकते हुए लाउड स्पीकर
और बसते हुए भजन
‘मन गंदा और तन
को धोए’
देवताओं पर बहते
हुए मनो दूध
और धर्माचार्यों
द्वारा यह घोषणा
देश में कभी
बहती थी कभी दूध की नदियां
जैसे वेदों में
विज्ञान की घोषणा
लेकिन होता रहा
जातियों का आविष्कार
घोषित किया गया
गाय को माता
और जैसे ...................
सोचता हूं
कब आएगा वह
खूबसूरत पल
और कब बदलेंगे
सारे दृश्य
कब होऊँगा मैं
अपने घर में
इत्मीनान
या खूबसूरत पल
के झूलते हुए
निर्माण तो नहीं
कर पाऊंगा
8.
निहायती चालाकी
से
..........................................
निहायती चालाकी
से
चलाए जा रहे हैं
फावड़े
कि अच्छी खासी
और पत्थरों से
भी सख्त
दिखने वाली
इमारत ढह गई
तो क्यों डर गई
कि खोद दी गई
उसकी नीव
उन निशानियों को
मिटा दिया गया है
बहुत ही सफाई से
फावड़े चलाते
वक्त
जो बने थे उनके
पावों के निशान
इन ठेकेदारों ने
नींव खोदने का
लिया था ठेका
बड़े ही आराम और
मस्ती से
पिए जा रहे हैं
सिगरेट और शराब
इमारत गिरने पर
शुरू हो गए हैं
झगड़े
चमकने लगे हैं त्रिशूल और तलवार
ठेका देने वाला
ले रहा है जायजा
ठेकेदार से
कितने हुए हलाक
कितने बचे जख्मी
जख्मियों की
हालत बिगड़ चुकी है या नहीं
और हंसते हुए
बता रहा है वह
अपने आकाओं को
मृतकों की तादाद
9.
मेरा शम्बूक
........................
तुम कहते हो
‘राम’ है
मैं कहता हूं ‘राम’
नहीं है
तुम कहते हो ‘राम’
नहीं है
तो शम्बूक भी
नहीं
लेकिन जब तक
तुम्हारा ‘राम’
बना रहेगा
बना रहेगा
मेरे जेहन में
मेरा शम्बूक भी
10.
एक कुख्यात समय
से
.....................................
एक कुख्यात समय
से
गुजर रहे हैं हम
जहां न नीति है
न चरित्र
सिर्फ और सिर्फ
है
किसी को निगल
जाने की होड़
एक निवाले की
तरह
और ना निगलने की
स्थिति में
पैरों से रौंद
कर
अपना रास्ता
आसान करते हुए
आगे निकल जाना
समय
उनका है
और वे
समय को
बखूबी जानते हैं
इस्तेमाल करना
अपने हित में
अपने तरीके से
प्रस्तुति :
डॉ. कर्मानंद आर्य
सहायक प्राध्यापक
भारतीय भाषा केंद्र, हिंदी
दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गया
बिहार, पिन - 823004
मो. 8863093492
विपिन बिहारी जी सच में साहित्य के सघन वन हैं, जिसमें विचरना कठिन नहीं हैं, बल्कि कई अलग-अलग अनुभूतियों का दर्शन है | उनकी रचनाओं में मानव मूल्यों का ह्रास,धार्मिक और राजनीतिक पाखंड आदि का सहज साक्षात्कार है|उनकी रचनात्मकता, निरंतरता और तन्मयता को सलाम है|
जवाब देंहटाएंबेआवाज भीतरी शोर से शिद्दत से रूढ़ मान्यताओं और परम्पराओं के खिलाफ विपिन बिहारी जी की सदायें सुनी जा सकती है। आपकी रचनाएँ धार्मिक, रूढ़ और राजनीतिक छल-प्रपंच के खिलाफ़ एक पुष्ट स्वर है। आप स्थापित कहानीकार तो हैं ही, साथ ही मौलिक कवि भी हैं। आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं