1.
अम्बेडकर / कर्मानंद आर्य
..........................................
इससे
पहले न धरती थी न मिट्टी
न कोई
कला थी न कलाकार
न नफरत
थी न प्रेम
फिर
तुमने मिट्टी को छुआ
कला
पैदा हुई
कलाकार
पैदा हुआ
प्रेम
पैदा हुआ
तुमने
एक मूरत गढ़ दी
एक
मूरत पैदा हुई
रंग
पैदा हुआ
जो अभी
तक था रंगहीन
वर्ण
पैदा हुआ
जो अभी
तक था वर्णहीन
यह
निश्चित है
तुम
अपने समय को समझ गए थे
तुम्हें
पता था
आने
वाला समय तुम्हारा है
धरती
में, मिट्टी में, कला में
तुमने
कैसा अमर प्राण डाला था
मेरे
कलावंत
2.
आंबेडकर की अदालत / कर्मानंद आर्य................................................
इतिहास
में वे अभागे
फांसी
पर लटका दिए जाते हैं
जो
मनुष्यता के विरोध में
वर्चस्व
की सत्ता लाते हैं
स्वतंत्रता,
समता और बंधुता
जिनके
यहाँ अपराध की इकाई है
श्रेष्ठता
जिनके यहाँ
कुंठा
में पलती बढ़ती आयी है
वे एक
रोज
होते
हैं कोपभाजन का शिकार
एक समय
बाद
जनता करती
है उन्हें धिक्कार
एक दिन
मनु को
आंबेडकर
की अदालत में लाया गया
उसके
अपराधों को सबको बताया गया
मनु चुप
और निर्वाक था
मनु
धूर्त और चालाक था
हाथ
जोड़कर बोला
महाराज !
मैंने कोई विद्या नहीं फैलाई है
धूर्त
ब्राह्मणों ने यह किताब मुझसे लिखवाई है
मैं
पढने-लिखने वाला गरीब
मुझे न
मारा जाय
मुझसे
पहले शंकराचार्य को धिक्कारा जाय
मैं
राजा नहीं जिसका आदेश माया जाय
मुझे
मेरे पढने लिखने की सजा दिया जाय
और भी
कई अपराधी हैं जिन्होंने
लोगों
को ऊँच-नीच बनाया है
पुराण
रचकर जिन्होंने वितंडा फैलाया है
उन्हीं
में से एक
एसआईटी
गठित कर शंकराचार्य को लाया गया
मनुष्य
और मनुष्य के बीच भेद का आरोप लगाया गया
शंकराचार्य
चुप और निर्वाक था
धूर्त
और चालाक था
हाथ
जोड़कर बोला
महाराज !
मैंने यह विद्या नहीं फैलाई
मैंने
तो वेदों की बात ही बतलाई
जिसकी
विद्या का भेदभाव आधार है
सरकार
मुझे भी न्याय की दरकार है
आंबेडकर
समझ गए
भेदभाव
संगठित अपराधियों की साठ-गाँठ है
यह
सम्पूर्ण ब्राह्मणवाद का एक पाठ है
इस पर
एक विशेष अदालत का गठन किया जाय
जनता की
अदालत में मुकदमा सुना जाय
उनके
आदेशानुसार
जनता
मुकदमा सुन रही है
जनता एक
दिन फैसला सुनाएगी
इतिहास
के अभागे फांसी पर लटकाये गए
जनता की
अदालत के जन गीत गाये गए
3.
भगवा
आंबेडकर / कर्मानंद आर्य
........................................
नीले
कपड़े वाला
भगवा
पहन कर आ गया
हमारा
आंबेडकर ‘उनके’ घर में जगह पा गया
हम तो सुधर
चुके
अब वे
भी सुधर जायेंगे
जो
राम-राम चिल्लाते थे वे भीम-भीम चिल्लायेंगे
करेंगे
आरक्षण की माँग
सुबह
उठकर करेंगे संविधान को प्रणाम
गाहे-बगाहे
स्मृतियाँ जलाएंगे
लगता है
वे नया भारत बनायेंगे
वे
कहेंगे व्यावहारिक तौर पर हिंसा बंद हो
व्यावहारिक
जातिवाद ख़त्म हो जाये
सब
नौकरियों में एक जाति न रहे
डाइवर्सिटी
का सपना सबका सपना हो जाए
वे आफिस
और घर में आंबेडकर की फोटो लगा रहे हैं
वे कौन
लोग हैं जो नई दुनिया बना रहे हैं
4. 4.
आंबेडकर / कर्मानंद आर्य
............................
न नीली
टोपी
न ऊंची
आवाज
न शोषण
के खिलाफ उठता एक संगठन
न दुखता
संताप
न भारत
की दीनता
न दुःख न
दासता
न हीनता
की ग्रंथि न उच्चता का भाव
न
आरक्षण, न बचाव
आंबेडकर
हैं नदी में नाव
न
स्त्री की पुकार, न दलित चीत्कार
न धूप न
अन्धकार
न
आदिवासी न पिछड़ा
न
दक्षिण न वाम
न सुनो
ब्राह्मण! न सलाम
न
मुर्दहिया, न झोपड़ी से राजभवन की दास्तान
आंबेडकर
है गुणकारी दवा का नाम
दीन-दुखियों
के चेहरे पर स्मित बुद्ध की मुस्कान
किसी
अखाड़े से बड़ा
आंबेडकर
एक सम्प्रदाय का नाम है
संघर्ष
के लिए पलायन करते
मनुष्य
के संघर्ष का गान है
5.
बदलाव / कर्मानंद
आर्य
.......................................
एक दलित
से आज मिला
वह
ब्राह्मणवादी हो गया
आरक्षण के
मजे उड़ाकर
आंबेडकर
को खा गया
पे बैक
सोसायटी से न उसका कोई काम
घूस-पात
खाकर लेता है राम नाम
आज भी ‘तिलकधारी’
की वह पादुका उठाता है
नव दलित
कहलाता है
पढ़ना
लिखना छोड़ दिया
पड़ोसी
से मुख मोड़ लिया
पीर-पैगम्बर
जाता है
अपने को
बड़का दलित बताता है
कुछ लोग
दलित न होकर भी करते हैं बड़ा काम
आरक्षण
और संविधान को मानते हैं हुक्काम
अपने
ड्राइंगरूम में आंबेडकर की फोटो लगाते हैं
सावित्रीबाई
फुले और आंबेडकर को पढ़ाते हैं
रात दिन
करते हैं मानवतावादी काम
जनता को
देते हैं भाई-चारे का पैगाम
वह कोरे
विमर्श को धता बताते हैं
मिल
बांटकर खाते हैं
मैं नवदलित
अपने
भीतर के द्वंद्व को समझ नहीं पा रहा हूँ
कभी उस
दलित की तरफ
कभी उस
मानवतावादी के चक्कर लगा रहा हूँ
6.
रो रहे हो आरक्षण के लिए बुजदिल / कर्मानंद आर्य...........................................................................
एक
आंबेडकर था अपने समय में
वक्त का
असली हीरो
घने
अंधेरों के बीच लिख रहा था इबारत
ठीक से
कलम नहीं थी
आसानी
से मिलता नहीं था कागज़
फिर भी
घुनी हुई व्यवस्था की
हरी कर
डाली कॉपियां
इतने
पन्ने लिख डाले
जितने
हमने कभी पढ़े न होंगे जिन्दगी में
लिख
डाली मनुसंहिता से बेहतर
एक नई
संहिता
उसका
मनोबल ही तो था
आज लाखो
बैरिस्टर हैं हमारे
पर एक
भी नहीं जो दहाड़ सके
समझ सके
कानून के सामाजिक दायरे
दिला
सके अंधे को विश्वास कि
अँधा
नहीं कानून
कितने
तो प्रोफेसर हैं
माफ़
कीजियेगा
सफेदपोश,
ऐय्याशीबाज
खुश हो
गए दस लाख की गाड़ी पाकर
बच्चे
को कान्वेंट पढ़ाकर
हो गई
उनकी इतिश्री
गाड़ियों
पर हूटर लगते ही
कुछ ने
तो शहंशाह समझ लिया अपने आपको
आज आपके
पास क्या नहीं है
हीनता
और बुजदिली के अलावा
पर आप
कभी नहीं चाहेंगे
कुलपति
बनना, कमिश्नर बनाना
राज्यपाल
या मुख्यसचिव बनना
क्योंकि
वहां आरक्षण की बैसाखी नही मिली है
खुश हो
मास्टर और क्लर्क कहाकर
बहुत पढ़
लिख चुके
बहुत हो
चुका आपका विकास
अच्छा
है जो आरक्षण को दीमक की तरह
खा ही
जाए सत्ता
लुट जाए
सारी जनता
वह
जानती है सबल को भी चाहिए आरक्षण
अभी तो
तुम बहुत निर्बल हो
एक
आंबेडकर ही काफी था एक बड़ी भीड़ से
कितना
बड़ा नैतिक बल था उसके पास
वह अपने
वक्त का हीरो था
लिख रहा
था नई इबारत
7.
बाबा आंबेडकर / कर्मानंद आर्य
........................
करिया
अच्छर भईस बराबर
लागत बा
करबा गुड़ गोबर
अनपढ़
रह्या बहुत दुःख पाया
आपन तू
यस सरग लुटाया
सुना
मरदे ! पढ़िला दुई पाठ
आंबेडकर
और बुद्ध के साथ
8.
नया जमाना / कर्मानंद आर्य
........................
हमने
तुम्हारा जंघिया धोया
तुमने
हमें इकन्नी दी
हमने
सिर की मालिश कर दी
आपने
साहब चवन्नी दी
हम
चवन्नी पा खूब इतराये
आंबेडकर
की किताब घर ले आये
यह
हमारी शुरुवात थी
मनुवादी
किताबों में जिसे दिन लिखा था
पहली
बार पता चला वह रात थी
हमने आपका
दिया चार आना
व्यर्थ
नहीं बहाया
उस पैसे
से आंबेडकर जयंती मनाया
गली
मुहल्ले के बच्चों ने
कुछ नया
देखा नया पाया
तो कह
उठे
अब
परिवर्तन का युग आया
बाबा
कौन सी किताब ले आया
9.
रमाबाई आंबेडकर / कर्मानंद
आर्य
................................................
रमाबाई तुम एक
जीवित गीत हो
जिसे हर युग अपने
सधे शब्दों में साधता है
एक जीवित स्त्री
की तरह
जीवन की सबसे बड़ी
आकांक्षा
तुम वह शक्ति हो
जिसे पूजती है प्रकृति
जिसे पूजता है वन
जिसे निहारती है
अनन्तरूप फैली नदियाँ
तुम्हारी ही शक्ति
से
मुक्तिदाता को
मिलता है मुक्तिबोध
आकाश दहाड़ता है बस
तुम्हारे बल पर
तुम उस स्त्री की
गाथा हो
जो ईश्वर से पहले
आई
सबसे पहले किया
प्रेम उस पुरुष से
जो ईश्वर का
स्थानापन्न रहा
जो सलीब पर इसलिए
लटकता रहा
ताकि दुनिया का
दुःख दर्द जाता रहे
जो बुद्ध बना तो
इसलिए
शेष रह गए थे कुछ
दुःख बुद्ध के बाद
सिद्धों की
जोगमाया थी उसके भीतर
योग जागता था कहीं
अन्दर
पर वह ‘योगी’ नहीं था
वह पुरुष था
तुम्हारा पौरुष था
उसके भीतर
वह लड़कर जीतता था
तुम्हारी शक्तियों से
एक खेल जिसे बहुत
अधूरा खेला गया
जबकि कुछ पाशे
बिखरे रहे आसपास
तुम्हारे शहर में
उन दिनों
दापोली आज भी कहीं
है
तुम आज भी कहीं हो
नौ बरस की बालिका नहीं
नौ हजार वर्ष की
दादी
हर बार कोई
तुम्हें दुहराता है
घाटियों में उतरते
किसी झरने के कंठ सा
तुम एक छोटी सी
पहाड़ी नदी हो रमाबाई
खुद में डूबी हुई
एक आदिम लहर
तुमसे पूछना चाहता
हूँ रमाबाई
कुछ बहुत
व्यक्तिगत प्रश्न
कुछ बहुत
व्यक्तिगत सवाल
दुनिया अक्सर
पूछती है तुमसे
पूछा भी जाना
चाहिए अनुराग को वह पल
जो लगता है अभी
बिलकुल अभी तक बचा है
उसे सब दुहराते
हैं
लेकर तुम्हारा नाम
पर सच है वे भी
मसीहा के प्रेम में
खोते हैं खुद को
पाने तक
वह कौन सा गीत है
जिसे वे बार-बार
गुनगुनाते रहे
अपने सबसे बुरे
दिन में
तुम्हारे कंधे पर
झुककर वह कौन सा गीत
तुम्हें सुनाते
रहे बार-बार
वह कौन सी प्रेरणा
तुमने दी
जिससे वे डटे रहे
क्रूर मनुष्यों के
बीच
वह किस रंग की
दुनिया है
जहाँ सिर्फ खिलते
रहे जवा कुसुम के फूल
तुम्हारा ह्रदय
सजाने के लिए
दुनिया के सबसे
खूबसूरत हाथ
दुनिया की सबसे
हैण्डसम बाहें
किसे बुलाती रहीं
बार-बार
वह तुम्हारा
व्यक्तिगत अनुभव
कैसे पिघलता रहा
फौलाद
तुम्हारे तनिक
स्नेह के स्पर्श से
तुमने महसूस किया
होगा
कैसे उतरता रहा
चाँद
रोज तुम्हारे
अहाते में
वह तुम्हारा पति
ही था
जिसके शब्द हम
अँधेरे में भी दुहराते हैं
तुमसे कुछ और भी
पूछना चाहता हूँ
एक वह बात बताओ न
जिसपर तुम उनसे
लड़ी बार-बार
वह कौन सा उपहार
तुम्हें
लाकर देते थे
अम्बेडकर
बताओ न रमाबाई !
10.
बाबा आंबेडकर
........................
करिया
अच्छर भईस बराबर
लागत बा
करबा गुड़ गोबर
अनपढ़
रह्या बहुत दुःख पाया
आपन तू
यस सरग लुटाया
सुना
मरदे ! पढ़िला दुई पाठ
आंबेडकर
और बुद्ध के साथ
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