मर जाते हैं लोग
छाती पर रखा हुआ कोयला दहकता रहता है
छाती पर रखा हुआ कोयला दहकता रहता है
(कविता : 'बंत सिंह' से)
आज फिर शनिवार आ गया। गत 26 मई, शनिवार शाम को "दूसरा शनिवार" की कविता-गोष्ठी में हम सभी युवा कवि कर्मानंद आर्य को सुनने के लिए पटना गाँधी मैदान की गाँधी मूर्ति के पास इकट्ठे हुए थे।
हिन्दू धर्म के मिथक के अनुसार शनिवार "खरमण्डल" वाल दिन है। सदियों से लोग इसे मानते आ रहे हैं। लोगवाग इस दिन कोई अच्छा काम नहीं करते हैं। एक परम्परा है। इस परम्परा का सांकेतिक विरोध करते हुए साहित्यसेवकों ने इस बैनर का नाम रखा : "दूसरा शनिवार", जिन्होंने भी इस नाम का चयन किया इसके पीछे उनके क्या उद्देश्य थे नहीं कह सकता, लेकिन फिलहाल वे बधाई के पात्र हैं। हलाँकि शनिवार को अधिकांश दफ़्तर बंद भी होते हैं। इस ख्याल से यह दिन समयानुकूल भी है। जबकि यथास्थिति से इन्कार भी सकारात्मकता के पथ का अनुसरण है। अगुआ वही हो सकता है जो परम्परा-भंजक होगा।
हिन्दू धर्म के मिथक के अनुसार शनिवार "खरमण्डल" वाल दिन है। सदियों से लोग इसे मानते आ रहे हैं। लोगवाग इस दिन कोई अच्छा काम नहीं करते हैं। एक परम्परा है। इस परम्परा का सांकेतिक विरोध करते हुए साहित्यसेवकों ने इस बैनर का नाम रखा : "दूसरा शनिवार", जिन्होंने भी इस नाम का चयन किया इसके पीछे उनके क्या उद्देश्य थे नहीं कह सकता, लेकिन फिलहाल वे बधाई के पात्र हैं। हलाँकि शनिवार को अधिकांश दफ़्तर बंद भी होते हैं। इस ख्याल से यह दिन समयानुकूल भी है। जबकि यथास्थिति से इन्कार भी सकारात्मकता के पथ का अनुसरण है। अगुआ वही हो सकता है जो परम्परा-भंजक होगा।
18 फरवरी 2018 को सादे समारोह में हरिद्वार में डॉ रविता और डॉ कर्मानंद आर्य का आदर्श विवाह हुआ। गोष्ठी में कर्मानंद आर्य की पत्नी ★ डॉ. रविता, ★ घनश्याम, ★ रामनाथ शोधार्थी, ★ समीर परिमल, ★ सुजीत कुमार राय, ★ संजय कुमार ‘कुंदन’, ★ राजकिशोर राजन, ★ शहंशाह आलम, ★ डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, ★ श्वेता शेखर, कृष्ण समिद्ध, ★ कुंदन आनंद, ★ रामप्रवेश पासवान, ★ अरविन्द पासवान, ★ शिवनारायण, ★ हेमंत दास ‘हिम’, ★ प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा, ★ संजय कुमार सिंह, ★ अक्स समस्तीपुरी, ★ पंखुरी सिन्हा और आपकी ★ बड़ी बहन एवं ★ नरेन्द्र कुमार उपस्थित हुए। खासियत यह कि दो आम श्रोता भी इस कठिन काल में कविता गौर से सुन रहे थे, जबकि गाँधी मैदान में हजारों की भीड़ होती है।
कार्यक्रम की शुरुआत एक-दूसरे के परिचय के आदान-प्रदान से हुई। अतिथि कवि के परिचय के साथ मंच पर कविता-पाठ के लिए आमंत्रित करते हुए संचालक ने कवि के बारे में कहे गए दो साहित्यिक मनीषियों के शब्दों को उद्धरित किया :
"हाल के वर्षों में जिन कवियों ने अपनी प्रतिभा और रचनाशीलता से सम्पूर्ण हिन्दी जगत को प्रभावित और विस्मित किया है उनमें कर्मानंद आर्य अग्रणी हैं। संभवतः कर्मानंद सरीखा आज कोई दूसरा कवि नहीं है। इसका एक कारण तो लोक और शास्त्र का अद्भुत समाहार है जो कभी भी इन कविताओं को एक निश्चित तापमान से विचलित नहीं होने देता। उदाहरण स्वरुप 'डरी हुई चिड़िया का मुकदमा' कविता को लिया जा सकता है जो एक ही सांस में वाल्मीकि से लेकर अभी की शताब्दी तक की यात्रा तय करते हुए आज का प्रथम अनुष्टुप बन जाती है। यहां प्रायः हर कविता अपने समय का बिम्ब है। कर्मानंद आर्य आज के साथ हिंदी कविता में दलित स्वर, समवेत स्वर या धरती के समस्त वंचितों के सुख-दुख संघर्ष का वृंद गान बन जाता है। यह भावी का संकेत भी है और एक नए संधान भी।"
■ अरुण कमल ■
साहित्य अकादमी प्राप्त
साहित्य अकादमी प्राप्त
"कविताएं कवि के विचार-बोध का आईना हैं तो भाव-बोध की प्रतिमा भी, जो कवि की ज्ञानात्मक सम्वेदना और संवेदनात्मक ज्ञान के रासायनिक घोल में रची-बसी हैं। यह युवा कवि की निजता और मौलिकता की ओर इशारा करती हैं। यह कवि की पहचान का संग्रह साबित होगा। कवि का जीवन संघर्ष ही उसका रचनात्मक संघर्ष बनकर प्रस्फुटित हुआ है। कबीर जैसी प्रश्नाकुलता वह बीज-भाव है जो कवि को अपने समय-समाज के प्रश्नों और चुनौतियों से मुठभेड़ करते हुए बड़े खतरनाक ढंग से कविता के भीतर घुसने का जोखिम भरा साहस पैदा करता है। वंचित समाज के शोषण, दमन और उत्पीड़न के विरुद्ध ये कविताएँ प्रखर प्रतिरोध एवं गहरे इतिहास-बोध की कविताएँ हैं जो मनुष्य को मनुष्य समझने की माँग करती हैं।"
■ चौथीराम यादव ■
बहुजन चिंतक, रचनाकार
और आलोचक
बहुजन चिंतक, रचनाकार
और आलोचक
फिर कवि डॉ कर्मानंद आर्य कविता-पाठ के लिए आमंत्रित हुए।
कर्मानंद आर्य ने अपने दोनों संग्रहों ‘अयोध्या और मगहर के बीच’ एवं ‘डरी हुई चिड़िया का मुकदमा’ से सधी हुई आवाज़ में इन कविताओं का सुंदर पाठ किया :
● इस बार नहीं बेटी, ● वसंतसेना, ● घायल देश के सिपाही, ● जनरल डायर, ● नामदेव ढसाल, ● गाय नहीं बकरी माँ है, ● अयोध्या और मगहर के बीच, ● पिछड़े लोगों की भाषा, ● अंतिम अरण्य, ● प्रतिमान, ● मुसहरी : आरक्षण मेरे लिए नहीं है 'पटना, बच्चे, बेटियाँ, माएँ, पिता और पुनः पटना ● बंत सिंह, ● सच, ● एहसास, ● देह और ● डरी हुई चिड़िया का मुकदमा।
नरेंद्र कुमार के शब्दों में : "उनकी कविताएं आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि सभी पक्षों को लेकर थीं। पढ़ी गयी कविताओं में कुछ प्रेम विषयक थीं।"
दूसरा शनिवार की गोष्ठी के फॉरमेट के अनुसार कविता पाठ के बाद कवि की कविताओं पर बात न हो सकी। अध्यक्षता कर रहे डॉ शिवनारायण जी की अनुमति से मुजफ्फरपुर से अचानक आईं कवयित्री पंखुरी सिन्हा की कविताओं को भी सुनने का अवसर प्राप्त हुआ।
फिर भी कवि राजकिशोर राजन ने कहा कि आर्य की कविताएं सुनने और देखने में जितनी सहज हैं, वाकई हैं नहीं। कविताओं पर ठहर कर ही बात की जा सकती है। कविताओं का असर यह है कि यह अपने जद से बाहर निकलने नहीं देती।
उपस्थित कवयित्रियों, शायरों और कवियों ने अपनी कविताएँ सुनायीं। कार्यक्रम मुसलसल शाम करीब 5 बजे से 7:30 तक चला।
एकबार फिर से हम अतिथि कवि कर्मानंद आर्य, उनकी पत्नी और आप सबका आभार प्रकट करते हैं। आभार इसलिए भी कि इस लू में लोग जबकि घर में दुबके पड़े हैं, हम गाँधी मैदान पटना की सरजमीं पर कविता सुन और सुना रहे हैं। इस भीषण गर्मी की ज्यादतियों का भी एक तरह से विरोध है।
अध्यक्षता : डॉ शिवनारायण
संचालन/संयोजन : अरविन्द पासवान
धन्यवाद ज्ञापन : नरेन्द्र कुमार
संचालन/संयोजन : अरविन्द पासवान
धन्यवाद ज्ञापन : नरेन्द्र कुमार
इस तरह कवि, पाठक और श्रोता कई प्रश्न धर गए, और कई सवाल संग-साथ लिए गए।
(फ़ोटो : डॉ रविता जी और मेरे रेड MI नॉट 3 के सौजन्य से।)
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